Tuesday, 18 October 2011

राहुल धनकर के दोहे

श्री सतगुरु जी देवाय नमः


"साहिब तेरी साहिबी, कर गयी कमाल |
  कोई नहीं अजनबी, सब तेरे है लाल ||
  ये संसार गहन है, गहन है माया जाल |
   कोई यहाँ बचा नहीं, सबके पीछे काल ||
  अंदर तू बाहर तू , तू ही करता संभाल |
    तुझसा कोई नहीं, चलता हर पल नाल ||




"ज्ञान अगर बुधि में रहा तो बोझ बनता है और

अगर व्यवहार में आया तो आचरण बनता है |"







"ज्ञान को कभी कहा नहीं जा सकता है
लेकिन आपका आचरण आपके ज्ञान की सीमा को दर्शाता है
इसीलिए ज्ञान और आचरण एक दुसरे के पूरक है | "





"संसार की तरफ बढ़ना उलझना है |
मालिक की तरफ बढ़ना निकलना है | 
लेकिन जानते हुए भी हम फस जाते है |
हाय ये क्या हुआ समझ न पाते है |
बार बार संतो ने यही फ़रमाया है |
के भाई सब जाने फसे यही तो माया है |"




"गर था सतगुरु सरन तो बचा रहा,
दूरी हुयी तो कही का न रहा,
पर जो लाडले है सतगुरु के,
वो फिकर नहीं जीकर किया करते है,
क्योकि करते वो नहीं गुरुदेव किया करते है |
वो रहे कही भी गम नहीं ,
क्योकि वो गुरु की नज़र में रहा करते है |"



"साच कहे तो जाने नहीं | 


झूट कहे तो माने सही |
ये कुछ नाहि कलयुग का हाल है |
चहु और पसरा माया जाल है |
यहाँ पर जो आये, बचे बिरला कोई |
बचेगा सोही जापे, कृपा सतगुरु की होई |"


"श्री सतगुरु जी आपकी किरपा"

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